क्या जीतोगे तुम हमसे?
कैसे जीतोगे तुम उस राष्ट्र से
जिस मां की बेटियाँ जनती हैं
सलस्कर, कामते, करकरे
गजेन्द्र, संदीप, करमबीर
और वे जो उत्सर्ग करते हैं अनाम ही
और गिने भी नहीं जाते
जो अपने और पराये का भी नहीं करते भेद
तुम क्या उजाडोगे उस मां की कोख
तुम दशानन सही
कैसे लडोगे सत्व को पूजने वाली सभ्यता से
यह नहीं है धर्म की लड़ाई
जिसका तुम ढोल बजाते रहते हो
तुम बस थक गए हो और तुममे नहीं है आग वो
जो भीख से ले जाए तुम्हे श्री की ओर
कटोरों पे बसर करने वाले हो तुम कर्म से अजनबी
वासना और वांछा को पूजने वालों
तुम्हारा कोई राष्ट्र नहीं,कोई समाज नहीं हो सकता
न तुम किसी समाज को कुछ दे सकते हो
कहाँ है शक्ति तुममे कुछ देने या पाने की
The events of the past month have been so tragic, so unspeakably ugly that
the only rational response was to pretend it wasn’t happening. The raging
seco...
2 years ago
No comments:
Post a Comment