यह ५४२ ज़मींदार
जनादेश जिनके लिए वैश्या से अधिक कुछ नहीं
और संसद जिनका हरम है
बाहुबली जिनकी महफिल के साजिन्दे और पनवाडी हैं
जहाँ जनमत की अस्मत रोज़ फरोख्त होती है
कभी बाहर से और कभी भीतर के संबल के लिए
जहाँ सत्ता रोज़ अपने आशिक बदलती है
ग्राहक और दलाल रोज भूमिका बदलते हैं
इस अबला की इज्ज़त अगर बचानी है
तो इसका तिरस्कार रोकना होगा
चुनाव के नाम पर यह वेश्यागमन अगर रोकना है
तो सरकार का कर्ता सीधे और दो-टूक चुना जाना होगा
कुर्सी को द्रौपदी बनाने वालों के पाखंड का चीर हरना होगा
उन्नी के पिता ने राह पर कदम भरा है
पगड़ी पत्नी ने करकरे की बचाई है
भारत मां को इन व्याभिचारिओं के शोषण से बचाना है
तो संसद का स्वरुप ही बदलना होगा
दरिद्र को फिर से नारायण बनाना होगा
The events of the past month have been so tragic, so unspeakably ugly that
the only rational response was to pretend it wasn’t happening. The raging
seco...
2 years ago
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